अक्सर ऐसा माना जाता है कि बच्चों को अच्छे और बुरे का ज्ञान नहीं होता लेकिन फिर भी बचपन में बच्चे क्रिश, शक्तिमान, हातिम, कैप्टन अमेरिका, आयरन मैन, सुपरमैन, कर्मा, मोटू-पतलू, जूनियर-जी, मिस्टर इण्डिया और हैरी पाॅटर जैसे चरित्रों को पसन्द करते हैं न कि काल, वोल्डोमार्ट, डा.जयकाल, तमराज किलविष, अल्ट्राॅन, लोकी और मोगैम्बो जैसे कैरेक्टर्स को क्योंकि बचपन से ही हमारी लाइफ़ में कुछ ऐसे ख़ास बिम्बों का निर्माण होता है जो हमे अच्छे और बुरे के बीच की खाई के फ़र्क़ को समझाने में मदद करते हैं। इन्ही बिम्बों के कारण बच्चे शक्तिमान को अपना हीरो मानते हैं न कि तमराज किलविष को। फिर भी न जाने क्यों माता-पिता यही मानते हैं कि बच्चों को सही-ग़लत की समझ नहीं होती क्योंकि टेलीविज़न पर तो वह अपना आईकन हैरी पाॅटर को मानते है लेकिन रियल लाइफ़ में बच्चों का आइकन मोहल्ले का वह लड़का होता है जो आम भाषा में उस एरिये का डाॅन कहलाता है। यही मुख्य कारण मां-बाप को यह समझने पर मजबूर कर देता है कि बच्चों को सही-ग़लत का अन्तर नही मालूम है क्योंकि इस समय उनके सपने होते है कि उनका बच्चा डाॅन को नहीं बल्कि 'कलाम साहब' और उनके ऐसे व्यक्तित्व के लोगो को अपना हीरो माने और बड़ा होकर अच्छे गुणों से उनका नाम रोशन करे।
जैसे-जैसे वह बालक अपनी उम्र के पड़ावों को तय करता जाता है ठीक वैसे-वैसे उसके आइकन में बदलाव आने शुरु हो जाते हैं क्योंकि उम्र के पड़ाव उसकी समझ का विकास करते हैं। फिर जब वह उससे भी मज़बूत व्यक्ति से मिलता है खासतौर से परिवार से अलग वह शक़्स जो बालक को प्यार के साथ रुपये भी देता है तो कुछ समय के लिए बच्चा उस पर फ़िदा हो जाता है। इसी प्रकार उसकी पसन्द बदलती रहती है या कहना अनुचित न होगा कि उसके आइकन बदलते रहते हैं और जब वह आइकन के सिद्धान्त को समझ जाता है तो वह दूसरो में भी इसकी समझ विकसित करने की कोशिश करता है।
इस पूरी प्रक्रिया में सारा खेल 'आइकन' के ही इर्द-गिर्द चलता है लेकिन शायद ही किसी का ध्यान इस ओर गया हो कि यह आइकन है क्या? इसी आइकन को आम भाषा में हीरो कहा जाता है।इस हीरो को सिनेमा और साहित्य में 'नायक' की संज्ञा दी गई है।नायक उस कड़ी का नाम है जिसके आस-पास कहानी मंडराती है एवं उसके पास ढेर सारी मोहब्बत, हमदर्दी और भावनाओं का ख़ज़ाना होता है जिसका उदाहरण है प्रेमचन्द की 'ईदगाह' और 'पूस की रात' फिल्म शोले और मुग़ले-ए-आज़म जिसमे हामिद, हल्कू, जय-वीरू, ठाकुर, सलीम और अनारकली के साथ इन चीज़ो का अम्बार लग जाता है और यहाँ तक कि जो लोग ज़्यादा इमोश्नल होते है वह नायक का दर्द महसूस कर रोने भी लगते हैं। इसी वजह से बच्चों के साथ सभी को हीरो यानी नायक ही पसन्द आता है क्योंकि नायक रोशनी, अच्छाई और सच्चाई का प्रतीक होता है और यही प्रतीक हमारी समझ का दायरा विकसित करने की बहुत ही महत्वपूर्ण कड़ी है क्योंकि इस प्रतीक की मेहरबानी से ही हम सही और ग़लत नाम की दो मंजिलों में से एक को अपनी मंजिल बनाते हैं। अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम नायक से प्रभावित होते हैं या खलनायक से और कौन सी मंज़िल की ओर चलते हैं?