दर्शन शास्त्र जिसे अंग्रेज़ी में फ़िलाॅस्फ़ी कहा जाता है। यह एक ऐसा विषय है जो तजुर्बो पर आधारित होता है। बड़े-बड़े विचारकों ने जो भी अनुभव किया उसे अपने-अपने हिसाब से समाज को अर्पित कर दिया। फ़िलाॅस्फ़ी मात्र एक विषय नहीं बल्कि यह बहुत से विषयों का एक बहुत बड़ा जाल है। ऐसे ही तमाम विषयों में से एक प्रमुख विषय का नाम साहित्य है। साहित्यकार साहित्य के माध्यम से ही जीवन के तजुर्बो को गद्य और पद्य के ज़रिए समाज के सामने पेश करने के महत्वपूर्ण काम को बहुत सुन्दरता के साथ अंजाम देते है एंव समाज को समाज से परिचित करवाते है। ऐसे ही एक फ़लसफ़ी शायर का नाम 'जाॅन एलिया' है जिनकी शायरी की सबस उम्दा अदा यह है कि उनके कहे अशार सुन्ने और पढ़ने में तो बहुत आसान से लगते है लेकिन जब व्यक्ति अशार की गहराई में जाता है तो उसकी हक़ीक़त मन को हिलाकर रखने के साथ विवश करती है यह सोचने पर कि क्या ऐसा भी हो सकता है। जाॅन के द्वारा रचित ऐसी ही रचनात्मक चार पंक्तियों के सौन्दर्यबोध पर बात की जाएगी।
"जो रानाई निगाहों के लिए सामान-ऐ-जलवा है।
लिबास-ऐ-मुफ़्लिसी में कितनी बेक़ीमत नज़र आती॥
यदि बात जाॅन की कही पहली दो पंक्तियों पर की जाए तो यह समाज से यह कह रही है कि जो दिख रहा है वह वास्तविक नहीं है और जो वास्तविक है वह दिख नहीं रहा क्योंकि आज के समाज को तो जैसे दिखावे की आदत सी पड़ गई है। यह कहना कहीं पर से भी ग़लत न होगा कि मनुष्य को वही चीज़े प्रभावित करती जो उसे प्रिय होती है। जैसे अच्छा व्यक्ति ईमानदारी और सत्य से प्रभावित होगा तो वही लोभी व्यक्ति चमक-धमक से क्योंकि दिखावे को हर व्यक्ति का स्वाद पता होता है। दिखावा अपने इसी ज्ञान का फ़ायदा उठाता है और किसी न किसी भेस में आकर सदैव मनुष्य को ठगने के लिए बेताब रहता है। इसी दिखावे का एक बेहतरीन उदाहरण शक्तिमान सीरियल का पात्र 'कुमार रंजन' और फ़िल्म 'कुरुक्षेत्र' का निगेटिव पात्र 'शम्भा जी' है जो सत्य और ईमानदारी का मुखौटा ओढ़कर आते है और अपने मक़सद को अंजाम देते है क्योंकि एसीपी. पृथ्वीराज सिंह जैसे लोग लालच मे नही आने वाले होते है। इसके अतिरिक्त कुमार रंजन जिसका दूसरा रूप साहब का होता है और साहब के ही रूप में वह लालच दिखाकर बुरे लोगो को अपने साथ मिलाता है क्योंकि उसे पता होता है कि कैसे लोग किस तरह और कौन से रूप से प्रभावित होते है। ऐसे लोगो का सिर्फ़ एक ही लक्ष्य होता है कि हर हाल में उनका स्वार्थ पूरा हो चाहे इसके लिए उन्हें कोई सा भी भेस लेना पड़े और कुछ भी करना पड़े। हक़ीक़त में ऐसे लोगो का तो कोई व्यक्तित्व होता ही नहीं है। भले ही वह अपने आप में कितने ही महान, चालाक आदि क्यों न बने और इन जैसी प्रवत्ती के लोग उस झूठ के समान होते है जो सोसायटी के सामने हमेशा सच के लिबास मे आते है और अपनी प्रेजेन्टेशन को ऐसे पेश करता है जैसे वही अन्तिम सत्य है। जाॅन की ख़ासियत यहाँ पर यह रही कि उन्होंने मात्र दो पंक्तियों में कितनी आसानी से ऐसे दिखावे के विषय में बहुत ही रचनात्मक तरीक़े से बता दिया दिया कि रानाई यानी रंगीनियाँ कैसी होती है और जब वह अपने असली रूप में सामने आती है तो कैसी लगती है दोनो में फ़र्क़ हो जाता है।
यहाँ तो जाज़ेबियत भी है दौलत ही की परवर्दा।
ये लड़की फ़ाक़ाकष होती तो बदसूरत नज़र आती॥
इसी रचनात्मकता के साथ जाॅन ने दूसरी पंक्ति भी कही जो सुन्दरता के वास्तविक रूप को बता रही है कि जिसे लोग सुन्दर समझ रहे है वह तो वास्तव में सुन्दर है ही नहीं और जो हक़ीक़त में सुन्दर है उसकी तो कहीं चर्चा ही नही है। जिसका एक बेहतरीन उदाहरण सिंगरैला की कहानी है क्योंकि जो सुन्दर दिख रहे है उन्होंने कभी भूखे रहने का स्वाद नहीं चखा, कभी ग़रीबी नहीं देखी और इसी वजह से ही उनकी सुन्दरता उनकी परेशानियों में छिप गयी है इसलिए लोग उनकी सुन्दरता को नहीं देख पा रहे है और जिसकी सुन्दरता को वह देख रहे है वह दौलत के लिबास की सुन्दरता है न कि उनकी अपनी। इसी वजह से ही लोग धोखा खा जाते है जिसके विषय में जाॅन बहुत ही सरल शब्दों मे बता रहे है कि नज़र ऐसी हो जो वास्तविकता को देखने की क्षमता रखती हो न कि दिखावे को देखकर उस पर फ़िदा हो जाए।